लोकनाट्य अनुभाग
"देवारी' नाटक नही आंदोलन है। भरपूर योग्यताओं के बावजूद अयोग्य लोगों द्वारा हक छीन लिये जाने पर भी ऊफ न कर सकने वाले इस अंचल के लोकजनों की पहली चीख है "देवारी" । अल्पसंतोषी, परबुधिया, सिधवा और भोले-भाले छत्तीसगढ़िया अब शोषकों के पैतरों को समझने लगा है। यह नाटक आदमी को शोषण, गरीबी, भुखमरी और अन्याय के नरक से मुक्त होने तथा अपने मूलभूत अधिकार को पाने के लिये किसी चमत्कार या मसीहा की बाट जोहने के बजाय स्वंय को संघर्ष के लिये प्रस्तुत होने को प्रेरित करता है। यह छत्तीसगढ़ की ही नहीं, बल्कि दुनिया के उन समस्त लोगों की अर्न्तकथा है, जो सामंतवादी व्यवस्था व राजनीतिक छल-प्रपंचों के बीच अपनी ही मिट्टी और घर से बेदखल होने के लिये विवश हैं परंपरागत मंच कौशल से जुड़कर देवारी मंच पर साकार हुआ है। साधनहीनता के बावजूद अपने भीतर के राग के भरोसे जीवन की जटिलता के खिलाफ संघर्षरत् छत्तीसगढ़ को इस नाटक में पहचानने की कोशिश की गई है।
"देवारी" के सतत् प्रदर्शन के साथ-साथ संस्था निर्देशक तरूण निषाद के निर्देशन में "घर कहाँ है", "लोड़हा के भोरहा", "मंथरा", "शिवनाथ एक प्रेम गाथा", "सुकवा", "मंथरा" व होही बिहान" आदि कई लोकनाट्यों का मंचन निरंतर कर रहा है। वर्तमान में लोकनाट्य "छछानछाडू" अपनी प्रस्तुति प्रक्रिया में है। इस तरह संस्था की योजना पारंपरिक तथा मौलिक लोकनाट्यों का निर्माण व निरंतर प्रदर्शन भी है।