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लोक मंजरी एक परिचय

(भिलाई दुर्ग छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ में सर्व प्रथम मंचीय लोक कला को सम्मानजनक मजबूत आधार प्रदान किया "चदैनी गोंदा" ने। तत्पश्चात् "सोनहा बिहान" एवं इसी क्रम में "नवा बिहान" ने उसे गरिमा युक्त कर उसे उत्कर्ष बिन्दु तक पहुँचाया। उसी पंरपरा को और अधिक विस्तारित कर कला परंपरा का निर्वाह लोकमंजरी कर रही है। यह सत्य है कि प्रकृति व मनुष्य के तादात्म्य से ही संस्कृति अंकुरित होकर विशाल आकार लेती है। भले ही संस्कृति की कोई सर्वमान्य भाषा नही होती, परन्तु विभिन्न रूपों में हमारे भीतर परिलक्षित है। हमारी नसों के रग-रग में प्रवाहित है। ऐसी गरिमामयी समस्त लोक कलाएँ, साहित्य व संस्कृति को यथेष्ट व वाजिब मुकाम तक पहुँचाने का कार्य श्रद्धानवत् कर्तव्य भाव से लोकमंजरी ने अपने ऊपर लिया है। अंचल के लोक कलाकार, साहित्यकार व संस्कृति कर्मियों का ऐसा लोकतांत्रिक संगठन, जो सामूहिकता, सहभागिता, समानता और अनुशासन को नींव बनाकर अपने लक्षित उद्देश्यों की पूर्ति में पूरी प्रतिबद्धता के साथ संलग्न है। "लोकमंजरी केवल एक संस्था नहीं अपितु जन-जागरण की दिशा में एक कारगर कदम है।
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लोक मंजरी

17 सितम्बर 1992 को स्थापित "लोकमंजरी" संस्कृति विभाग भारत सरकार आदिमजाति अनुसंधान संस्थान व क्रीड़ा एवम् मनोरंजन परिषद् भिलाई इस्पात संयंत्र से संबद्ध होकर वर्तमान
में निम्न अनुभागों को लेकर सतत् सक्रिय है।

लोकमंजरी पंजीयन क्रमांक :- 1031 भिलाई दुर्ग छत्तीसगढ़

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